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धर्मचक्र बुद्ध विहार सारनाथ में अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच की संगोष्ठी में गूंजा स्वर : ‘राष्ट्रपति का बेटा हो या मजदूर की सन्तान, सबकी शिक्षा एक समान’

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वाराणसी। आज दिनांक 8 नवंबर 2025 को अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच एवं समान शिक्षा आंदोलन उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में धर्मचक्र बुद्ध विहार, सारनाथ में “नई शिक्षा नीति 2020 — सवाल, प्रतिरोध और समाधान” विषय पर एक विचारोत्तेजक संगोष्ठी आयोजित की गई।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. विकास गुप्ता (इतिहास विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने नई शिक्षा नीति को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि “यह नीति शिक्षा के निजीकरण और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देने वाली है। इसमें मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के संवैधानिक जनादेश की अनदेखी की गई है, जो शिक्षा को अधिकार नहीं, बल्कि बाजार का सौदा बना देती है।” उन्होंने कहा कि “देश में समान शिक्षा और समान स्कूल प्रणाली लागू होना ही सच्चे लोकतंत्र की बुनियाद है।” संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. महेश विक्रम सिंह, पूर्व अध्यक्ष, इतिहास विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने करते हुए कहा कि “वर्तमान शिक्षा नीति सामाजिक न्याय को कमजोर करती है और जातीय असमानता को बढ़ावा देती है। हमें ऐसी शिक्षा नीति की जरूरत है जो वैज्ञानिक सोच, समानता और लोकतंत्र की भावना पर आधारित हो।” उन्होंने कहा कि “अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच” वर्ष 2009 से ही “केजी से पीजी तक मुफ्त, समान और भेदभावरहित शिक्षा व्यवस्था” की स्थापना के लिए संघर्षरत है। संगोष्ठी में “सबको शिक्षा एक समान, लड़कर लेगा मजदूर किसान”, “राष्ट्रपति का बेटा हो या मजदूर की सन्तान — सबकी शिक्षा एक समान” जैसे नारों से पूरा परिसर गूंज उठा। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से अफलातून जी, डॉ. चतुरानन ओझा, डॉ. सन्तोष कुमार, डॉ. बृजेश भारतीय, लाल बहादुर, डॉ. आनन्द यादव, डॉ. राकेश भारद्वाज, दीनदयाल सिंह, बृजेश यादव, सुभावती, अमरनाथ मौय, संजय मौर्य आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी का संचालन डॉ. नीता चौबे ने किया और अंत में समान शिक्षा व्यवस्था लागू करने के लिए सामूहिक संकल्प भी लिया गया।

 

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