नई दिल्ली। देश के लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों के लिए लोकतांत्रिक कार्यशैली का निर्णायक पर्व होने जा रहा है, क्योंकि संसद का शीतकालीन सत्र इस वर्ष 1 दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर तक चलेगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस सत्र के आयोजन को मंजूरी दी है, जिससे इस सत्र को कार्यपालिका और विधायिका की साझा प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण माना जा रहा है।कुल 19 दिन की यह संसदीय बैठक 15 महत्वपूर्ण बैठकों में विभाजित होगी, जिसमें देश के संवैधानिक ढांचे और जनहित से जुड़े कई अहम विषयों पर चर्चा एवं निर्णय होंगे। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस अवसर पर कहा है कि यह सत्र एक रचनात्मक और सार्थक सत्र होगा, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूत करेगा तथा आम जनता की आकांक्षाओं को पूरा करेगा।इस सत्र में कई अहम विधेयकों को पारित करने का लक्ष्य रखा गया है, जिनमें संविधान के 129वें और 130वें संशोधन बिल, जन विश्वास बिल, और इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बिल मुख्य हैं। ये विधेयक देश के प्रशासनिक कार्यों और न्यायिक प्रणाली में सुधार की दिशा में मील के पत्थर साबित हो सकते हैं। साथ ही, मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) अभियान के दौरान उत्पन्न विवादों को लेकर विपक्ष सरकार को घेरने की योजना बना सकता है, खासकर 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर बहस की संभावना है।यह सत्र न केवल विधायी गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि आगामी चुनावों और राजनीतिक समीकरणों के लिए भी निर्णायक माना जा रहा है। सांसदों एवं सरकार के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय होगा, जिसमें वे देश के भविष्य के लिए अपने विधान मंत्रालयों का निर्माण करेंगे।संसद का शीतकालीन सत्र देश की संप्रभुता, शासन व्यवस्था और लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक होगा, जो जनता की उम्मीदों के अनुरूप बदलाव लाएगा और आने वाले वर्षों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा।









