नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की विशेष पीठ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर कई अहम प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने कहा कि केवल वे लोग वक्फ बना सकते हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन कर रहे हों, यह शर्त फिलहाल लागू नहीं होगी। कोर्ट ने वहीं वक्फ संपत्तियों की स्थिति निर्धारित करने की जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियों पर भी रोक लगाई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पूरे अधिनियम पर पूरी तरह से स्थगन लगाने से इंकार किया है।विवादित प्रावधानों पर अंतरिम रोकसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने तथा केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित करने के विषय में भी विवाद जारी है। अदालत ने निर्देश दिया है कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 20 सदस्यों में से चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते और राज्य वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल नहीं हो सकते। इसके अतिरिक्त, वक्फ संपत्तियों के राजस्व रिकॉर्ड के संबंध में वर्तमान में विवादित प्रावधानों पर भी रोक लगाई गई है, जो उन संपत्तियों के मालिकाना अधिकारों के मुकदमों के बीच लागू नहीं होंगे।सरकार की दलीलें और अदालत का रुखकेंद्र सरकार ने अधिनियम की संवैधानिकता का बचाव करते हुए कहा था कि यह कानून पारित करने में संसद की संवैधानिक धारणा सहित उचित प्रक्रिया अपनाई गई है। सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि इस कानून के कई प्रावधान फिलहाल लागू नहीं किए जाएंगे और किसी भी नई नियुक्ति या वक्फ संपत्तियों के मिलने में बाधा नहीं पड़ेगी। अदालत ने कहा कि कानून को चुनौती देना दुर्लभ मामलों में ही न्यायसंगत होगा और अभी तक पूरी तरह से अधिनियम पर रोक लगाना उचित नहीं।आगे की सुनवाई और महत्वसुप्रीम कोर्ट ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए सुरक्षित रखा है। यह सुनवाई इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और धार्मिक व सांप्रदायिक हितों के संरक्षण के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाएगा। अदालत का यह अंतरिम आदेश मुस्लिम समाज के लिए राहत भरा माना जा रहा है।इस मामले की सुनवाई ने वक्फ संपत्तियों के कानूनी नियंत्रण और राज्य की भूमिका पर व्यापक प्रभाव डाला है, जिससे यह सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी उच्च महत्व का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से केंद्र सरकार और विपक्ष में भी विवाद चला आ रहा है, जो देश के संवैधानिक और धार्मिक मामलों पर गहरी पकड़ बनाता है।









