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यूपी कॉलेज में कथाकार अमरकांत की जन्मशती पर एकदिवसीय सेमिनार आयोजित, “अमरकांत प्रेमचंद की परंपरा के जिज्ञासु यथार्थवादी रचनाकार थे”

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वाराणसी। उदय प्रताप स्वायत्तशासी महाविद्यालय के राजर्षि सभागार में सोमवार को प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत की जन्मशती के अवसर पर एकदिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी दो सत्रों में संपन्न हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. धर्मेन्द्र कुमार सिंह सहित अतिथियों ने राजर्षि जी के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन कर किया। अपने स्वागत उद्बोधन में प्राचार्य प्रो. धर्मेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि “अमरकांत प्रेमचंद की परंपरा के ऐसे रचनाकार थे, जो जिज्ञासु यथार्थवादी दृष्टि रखते थे।” उन्होंने ‘डिप्टी कलेक्ट्री’, ‘बहादुर’, ‘जिंदगी और जोंक’ जैसी कहानियों का उल्लेख करते हुए कहा कि अमरकांत की लेखनी समाज के गहरे यथार्थ को उजागर करती है। प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए कथाकार रणेन्द्र कुमार ने कहा कि “अमरकांत कहीं भी लाउड नहीं होते, बल्कि वे धीमे और संयमित स्वर में समाज की सच्चाई कहने वाले लेखक हैं।” उन्होंने ‘नौकर’, ‘समर्थ’, ‘हिलता हाथ’ और ‘हत्यारे’ जैसी कहानियों का विश्लेषण करते हुए कहा कि अमरकांत ने बेरोजगारी, स्त्री जीवन और गरीबों के संघर्ष का सशक्त चित्रण किया है। बीएचयू हिन्दी विभाग के प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि “अमरकांत के कथा साहित्य का स्वर मूलतः पूरबिया स्वर है। वे मध्य भारत के बदलते सामाजिक यथार्थ के रचनाकार हैं।” वहीं प्रो. मनोज कुमार (बीएचयू) ने कहा कि “अमरकांत की कहानियों में सौंदर्य का यथार्थ धीरे-धीरे प्रकट होता है और किसी एक केंद्र तक सीमित नहीं है।” द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि “अमरकांत की रचना-निर्मिति समाजवादी और प्रगतिशील आंदोलन के आदर्शों से रची-बसी है। उनका कथा-साहित्य स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों से प्रेरित है।” जनकवि शिवकुमार पराग ने कहा कि “अमरकांत की कहानियों का फिल्मांकन उत्कृष्ट रूप में किया जा सकता है।” प्रो. आशीष त्रिपाठी (बीएचयू) ने कहा कि “अमरकांत प्रेमचंद और यशपाल की प्रगतिशील कथा परंपरा को आगे बढ़ाने वाले लेखक थे।” संगोष्ठी के द्वितीय सत्र का संचालन डा. वंदना चौबे ने किया तथा प्रो. गोरखनाथ पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस अवसर पर डा. सदानन्द सिंह, डा. एम.पी. सिंह, प्रो. रमेशधर द्विवेदी, प्रो. प्रज्ञा पारमिता, प्रो. अंजू सिंह, डा. मीरा सिंह, प्रो. उपेन्द्र कुमार, डा. चन्द्रशेखर सिंह, डा. संजय श्रीवास्तव, प्रो. सुधीर कुमार शाही, प्रो. संतोष कुमार यादव, प्रो. अलका रानी गुप्ता, प्रो. पंकज कुमार सिंह, अजय राय सहित महाविद्यालय और बीएचयू के अनेक प्राध्यापक उपस्थित रहे। कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में छात्र-छात्राएं एवं शोधार्थी भी मौजूद रहे, जिन्होंने कथाकार अमरकांत की साहित्यिक विरासत पर चर्चा में सक्रिय भागीदारी की। 

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