वाराणसी। हर प्रसाद गुप्त इनक्यूबेशन फाउंडेशन एवं आउटरीच प्रकोष्ठ, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ द्वारा विकास आयुक्त कार्यालय, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से मंगलवार को एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। ‘सुगंधित पौधों की खेती एवं विपणन’ विषयक यह कार्यशाला डॉ. भगवानदास केंद्रीय पुस्तकालय समिति कक्ष में हुई, जिसमें साईं इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट तथा विस्तार इकाई सुगंध एवं सुरेस विकास केंद्र, कानपुर भी सहभागी रहे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. आनन्द कुमार त्यागी ने कहा कि भारत प्राचीन काल से ही उद्यमशीलता की भूमि रहा है। “भारत के इत्र, मसाले और औषधीय पौधों की ख्याति सदियों से विश्वभर में रही है। हमारे यहां की जलवायु ऐसी है कि हर प्रकार के पौधे उगते हैं। यही विशिष्टता हमें उद्यमिता और नवाचार के क्षेत्र में विश्व स्तर पर आगे बढ़ने की क्षमता प्रदान करती है,” उन्होंने कहा। कुलपति ने यह भी उल्लेख किया कि एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण अब औषधीय एवं सुगंधित पौधों का महत्व और बढ़ गया है। “हमें अपनी परंपरा और प्रकृति आधारित ज्ञान को संजोते हुए आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान देना चाहिए,” उन्होंने विद्यार्थियों से कहा। कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए हर प्रसाद गुप्त इनक्यूबेशन फाउंडेशन के निदेशक प्रो. मोहम्मद आरिफ ने बताया कि काशी विद्यापीठ एवं साईं इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट के बीच हुए एमओयू के अंतर्गत यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। “युवा शक्ति को स्वावलंबी बनाने, रोजगार सृजन और नवाचार के अवसर प्रदान करने के लिए इनक्यूबेशन फाउंडेशन निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। आउटरीच प्रकोष्ठ के निदेशक प्रो. संजय ने तुलसी और लेमनग्रास को स्वास्थ्यवर्धक पेय के रूप में विकसित करने पर बल देते हुए छात्रों को सुगंधित पौधों की खेती व विपणन से संबंधित विशेष प्रशिक्षण के लिए प्रेरित किया। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के राष्ट्रीय सचिव राजेश भाटिया ने कहा कि उद्यमिता वही है जो असंभव को संभव बनाने की क्षमता रखती है। “नौकरी लेना नहीं, बल्कि दूसरों को रोजगार देने की क्षमता ही सच्ची उद्यमशीलता है,”। तकनीकी वक्ता एवं आईपीआर विशेषज्ञ संजय रस्तोगी ने अपने उद्बोधन में संगीत उपचार के महत्व एवं सुगंधित फूलों-पत्तों के उद्यम विकास में उपयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने काशी के मंदिरों में प्रतिदिन निकलने वाले फूलों के सदुपयोग पर उदाहरण साझा किए। एफएफडीसी विस्तार इकाई, कानपुर के सहायक निदेशक डॉ. भक्ति विजय शुक्ला ने एरोमा थेरेपी की प्राचीन पद्धति का उल्लेख करते हुए कहा कि सुगंध चिकित्सा रामायण काल से आज तक उपयोगी और प्रभावी रही है। कार्यक्रम में अजय कुमार सिंह ने स्वागत एवं धन्यवाद ज्ञापन किया, जबकि संचालन डॉ. रवि प्रकाश सिंह ने किया। इस अवसर पर कुलानुशासक प्रो. के.के. सिंह, डॉ. विजय कुमार, डॉ. विश्वजीत, डॉ. पीयूष मणि त्रिपाठी, डॉ. जयदेव पाण्डेय, डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. ज्योति त्रिपाठी, डॉ. अमित सिंह सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।









