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ईएसआई अस्पताल पांडेपुर में मरीजों की हाहाकार: सरकारी दावे खोखले, गरीबों को इलाज और दवा दोनों से वंचित

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वाराणसी, 10 नवंबर 2025।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थित ईएसआईसी अस्पताल पांडेपुर में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली ने श्रमिक वर्ग के जीवन को संकट में डाल दिया है। जिस अस्पताल को गरीब मजदूरों और उनके परिवारों की चिकित्सा सुविधाओं के लिए स्थापित किया गया था, वही अब खुद बीमार व्यवस्था का शिकार हो गया है। न डॉक्टर समय से मिल रहे हैं, न दवाएं उपलब्ध हैं, और न ही सुनवाई के नाम पर कोई जवाबदेही दिखाई देती है।रतनपुर निवासी सुनैना चौरसिया पिछले साढ़े चार माह से इसी अस्पताल में कान के इलाज के लिए चक्कर काट रही हैं। उन्होंने बताया कि जांच और ऑपरेशन की औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी सर्जरी नहीं की गई, जबकि उनके बाद आए कई मरीजों के ऑपरेशन पूरे कर दिए गए। अब उन्हें बार-बार ओपीडी में लाइन लगाकर केवल आश्वासन मिल रहा है।मरीजों और उनके परिजन बताते हैं कि अस्पताल की ओपीडी व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। रोजाना लगभग एक हजार मरीज परामर्श के लिए पहुंचते हैं, लेकिन दवा सिर्फ 300 के आसपास मरीजों को ही मिल पाती है। बाकी मरीजों को कहा जाता है — “कल आइए, दवा खत्म है”। कई लोग रोज मजदूरी का काम छोड़कर सुबह-सुबह नंबर लगाने आते हैं, केवल यह सुनने के लिए कि दवा उपलब्ध नहीं है।अस्पताल के चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि दवाओं की आपूर्ति और स्टाफ दोनों में भारी कमी चल रही है। उन्हीं की मानें तो सीमित संसाधनों में इतने अधिक मरीजों को संभालना मुश्किल हो गया है। मगर सवाल यह है कि जब अस्पताल उन्हीं मजदूरों के अंशदान से संचालित होता है, तो फिर उन्हीं को इलाज से वंचित करना किस नीति का हिस्सा है?सुनैना चौरसिया ने इस अन्याय के खिलाफ 10 नवंबर को माननीय जिलाधिकारी वाराणसी को जनसुनवाई में शिकायत पत्र सौंपा है। उनके माध्यम से यह प्रकरण एडीएम सिटी द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय और मुख्यमंत्री कार्यालय तक भेजा गया है, ताकि अस्पताल की कार्यप्रणाली की विस्तृत जांच हो सके और जिम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जा सके।स्थानीय जागरूक नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने भी अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि पिछले एक वर्ष में अस्पताल में कितनी दवाइयां खरीदी गईं और कौन-कौन से मरीजों तक पहुंचीं, इसकी तहकीकात जरूरी है। कई दवाइयां लगातार बाहर से खरीद कर मरीजों को दी जा रही हैं, जिससे गरीब मजदूरों पर आर्थिक बोझ बढ़ा है।अस्पताल की अव्यवस्था इस बात का उदाहरण बन चुकी है कि सरकारी योजनाएं कागजों पर तो दमदार हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई कहीं अधिक दर्दनाक है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में मरीजों को जब इस तरह की परेशानी झेलनी पड़ रही है, तो अन्य जिलों में सेवा की स्थिति का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।जनता की उम्मीद है कि शासन-प्रशासन जल्द हस्तक्षेप कर इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराएगा, ताकि अस्पताल वास्तव में अपने उद्देश्य — गरीब मजदूरों की सस्ती और सुलभ चिकित्सा — पर खरा उतर सके।

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